लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका

क्या लोकतंत्र में विपक्ष का होना भी उतना ही जरूरी है जितना सरकार का होना? किसी काम को पूरा करने की जवाबदेही तो सरकार की होती है, तो फिर विपक्ष की क्या जरूरत है? क्या विपक्ष का काम सिर्फ सरकार की हर नीति का विरोध करना है।

सारे कार्यों पर निगरानी

लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत जनता इस देश की असली मालिक होती है जिसे बहुत सारे सेवकों की जरूरत होती है। वैसे तो बहुत सारे वेतनभोगी सेवक सरकारी अफसर व कर्मचारी के रूप में उनकी सेवा करने तथा उन्हें हर जरूरी सुविधा देने के लिये स्थायी रूप से अपनी पूर्णकालिक सेवा दे ही रहे हैं परन्तु उन स्थायी सेवकों से पूरी सेवा प्राप्त करने तथा उनकी गलतियों पर नजर रखने के लिये जनता अलग से अपने प्रतिनिधियों (सेवकों) का 5 साल के लिये चयन करती है जो जन प्रतिनिधि कहलाते हैं।
इस तरह से जनता द्वारा चुने गये ये जनता के प्रतिनिधि आपस में दो समूहों में बंटे होते हैं। एक बड़ा समूह जिनके पास आधे से ज्यादा सदस्यों का समर्थन होता है, वह सत्ताधारी समूह या दल कहलाता है जबकि बाकी बचे सदस्य व दल दूसरे समूह (सरकार विरोधी समूह) में होते हैं। इस समूह के दल व सदस्यों को विरोधी दल का कहा जाता है।
पहला समूह बहुमत में होने के कारण सरकार बनाता है। इस समूह में कभी एक दल या कभी अलग-अलग दल एक साथ मिलकर बहुमत का आंकड़ा पूरा करते हैं। इस समूह का जो नेता होता है, वह केंद्र में प्रधानमंत्री तथा राज्य में मुख्यमंत्री बन जाता है जो अपनी सरकार का मुखिया कहलाता है।
इसके अलावा सरकार के विभिन्न विभागों के संचालन के लिए अलग-अलग मंत्री होते हैं जो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के अधीन होते हैं। ये सभी मंत्री अपने-अपने विभागों के प्रति सरकार की ओर से पूरा जवाबदेह होते हैं। अपने विभागीय अफसरों या कर्मचारियों के सहयोग से अपने विभाग का सफलतापूर्वक संचालन करना इनकी जिम्मेवारी होती है।

इसके अलावा दूसरा समूह है जो सत्ता से अलग होता है। इस समूह में आने वाली सारी पार्टियां विपक्षी पार्टियों के नाम से जानी जाती है। ये सरकार के सारे कार्यों पर निगगरानी रखती है, समीक्षा करती हैं तथा सरकार की गलत नीतियों का विरोध करती हैं।

जनहित सर्वोपरि

कई बार सरकार द्वारा ऐसा कार्य भी किया जाता है या निर्णय लिया जाता है तो जनता के हितों के अनुरूप नहीं होता। ऐसे में विपक्ष द्वारा चुप रह जाना एक तरह से सरकार का मौन समर्थन करना होता है। फिर देश के असली मालिक जनता की अदालत में दोनों ही बराबर के गुनहगार माने जाते हैं क्योंकि सरकार के किसी भी गलत निर्णय का विरोध करना उनका नैतिक कर्तव्य है।

जनप्रतिनिधियों के इन दोनों समूहों को जनता द्वारा अलग-अलग तरह की जिम्मेवारी दी गयी है। आम जनता की सारी सुख सुविधाओं तथा जरूरतों का ध्यान रखना तथा अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश की गरिमा को कायम रखना सरकार की जवाबदेही है जबकि विपक्ष का काम सरकार को ऐसा करने से रोकना जो जनता के हित में अनुकूल न हो तथा विश्व मंच पर हमारे देश की मर्यादा को किसी प्रकार की ठेस पहुंचाये। साथ ही सरकार को अपना कोई भी फैसला लेते समय इस बात को पूरी तरह से ध्यान रखना चाहिये कि उनके इस फैसले का देश की आम जनता पर अच्छे और बुरे असर क्या-क्या हो सकते हैं जबकि विपक्ष का काम सरकार के किसी गलत निर्णय से होने वाले दुष्परिणामों से सरकार तथा आम जनता दोनों को आगाह करना है।

अगर इसके बावजूद सरकार अपना अड़ियल रूख छोड़ने को तैयार न हो तो विपक्ष सदन के भीतर और बाहर अपना विरोध प्रकट कर सकता है। विपक्ष को यह अधिकार है कि अगर सरकार जनहित की भावनाओं को अनदेखी करते हुए कोई नीतिगत फैसला लेती है तो वह सदन में सरकार से उस पर बहस की मांग कर सकता है। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर सरकार को रोकने के लिये सदन के भीतर कार्य-स्थगन प्रस्ताव ला सकता है।

इसके अलावा विश्व लोकतांत्रिक तरीके से जन-जागरुकता अभियान चलाकर आम जनता को सरकार की सच्चाई बताकर उसे सरकार के विरुध्द खड़ा कर सकता है। विपक्ष चाहे तो धरना, प्रदर्शन, घेराव आदि के माध्यम से सरकार के विरुध्द जन-आंदोलन चला सकता है। इस तरह से वह सरकार को अपना जन-विरोधी निर्णय वापस लेने के लिये मजबूर कर सकता है।

सरकार के साथ हुई बहुत सारी मजबूरियां होती हैं। सरकार अपने कई फैसले मजबूरी में लेती है परन्तु विपक्ष कभी मजबूर नहीं होता। उसे अपनी सत्ता हाथ से जाने या अपने किसी सहयोगी दलों या नेताओं के नाराज होने का कोई डर नहीं रहता, इसलिए उसे जनहित में बोलने से कोई रोक नहीं सकता।

सरकार कई बार अपने किसी स्वार्थ में राष्ट्रीय सुरक्षा को अनदेखा करके भी कोई निर्णय लेना चाहती है परन्तु विपक्ष ऐसे समय में चुप नहीं बैठ सकता। वह सरकार को रोकने के लिये हर संभव कोशिश कर सकता है क्योंकि वह मजबूर नहीं है और ऐसा करके वह अपने मालिक यानी जनता द्वारा सौंपी गयी विपक्ष के रूप में मिली अपनी जवाबदेही को निभाकर अपने कर्तव्यों का सही अर्थों में पालन कर सकता है। ऐसा करना उसका नैतिक कर्तव्य है।
परन्तु इसका मतलब यह कतई नहीं होता कि विपक्ष का काम सरकार के सही गलत सभी फैसले का सिर्फ विरोध करना है। अगर सरकार कोई ऐसा काम करना चाहती है जो जनता के हितों के अनुरूप है तो ऐसे समय में विपक्ष को उसका विरोध करने के बजाय सहयोगात्मक रूख अपनाना चाहिये। इस तरह से वह एक आदर्श विपक्ष की परंपरा को कायम कर सकती है।

देश की आम जनता अब काफी समझदार हो चुकी है और 5 साल बाद यह बाजी फिर से उसी के हाथों में होती है। वह सरकार और विपक्ष दोनों किरदारों के अभिनय का सही से मूल्यांकन कर फिर तय करती है कि कौन से किरदार वास्तव में किस लायक हैं या किसी नये किरदारों को आगे आने के अवसर दिया जाय।

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